शरीर घायल या
फिर मन घायल
दवा और दुआ
पत्थरों के इस शहर में
इनका मोल चुकाना होगा
भिखारी और पुजारी भी
बिना भीख , दक्षिणा
दुआ नही अब देते

रिश्ते बस एक संबोधन
और शब्दों में सिमट गए
मन अब मंदिर नहीं
सागर की लहर नही
बंजर धरती जैसे चटक गए
बरामदे में चारपाई पर
बैठी बूढ़ी अम्मा की
दूआयें तब्दील हो गयी
फैले आँचल में
आँखों में ममता
कोरों में आंसू
अब नहीं छलकते
विनोद.....
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