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सोमवार, 18 जुलाई 2011

मंजिल कोई मील का पत्थर नहीं होती


मंजिल कोई
मील का पत्थर
नहीं होती
मुसाफिर की कोई
मंजिल नहीं होती

मंजिल तो बस
एक पड़ाव है
अतीत आज और भविष्य
की संकरी गलियों से
गुज़रते
ज़िन्दगी के रास्तों का

उन रास्तों का
जिन्होंने मुझे
अत्तीत से निकल
आज के पड़ाव तक
हर क़दम
नया अहसास जगाया

थके जब
पाँव मेरे
तलवों को सहलाया
बस बढ़ते चलो का
हर बार
नया गीत गुनगुनाया

विकट बाधओं में
भटक गया जब
इन्ही रास्तों ने
मेरा साथ निभाया
हर बार
नया विश्वास जगाया

रास्ता कोई
बदलते मौसम की
सहर नहीं
सागर में सिमटी
लहर नही

रास्ता एक दृष्टि एक सृष्टि है
नए पगध्वनी के संगीत का
संगीत की खुश्बू
परिधि में क़ैद नहीं होती
इरादों की
कोई मंज़र नहीं होती
मंजिल कोई
मील का पत्थर नहीं होती

विनोद.....

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