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रविवार, 16 अक्तूबर 2011

चिंदिया उड़ाने से क्या होगा



ख़तों को अब संभाल कर रखने से क्या होगा
दर्द को यूँ समेट कर रखने से क्या होगा

खुली हवा में ख़तों कों सांस ले लेने दो
यूँ पोटली में समेट कर रखने से क्या होगा

ख़त संजीदा लफ़्ज़ों से लिपट कसमसाते होंगे
यूँ आरजूओं के परिंदे क़ैद करने से क्या होगा

साल-हा-साल गुबार-ए-ज़ख्म थे शुमार ख़तों में
यूँ बरसों कों लम्हे में बदलने से क्या होगा

कहा था ना खतों - किताबत से दूरी रखो
यूँ छत पर अब चिंदिया उड़ाने से क्या होगा