मेरा मानना है कि इंसान के अन्दर ऍक कवि या लेखक छुपा होता है।हर इंसान के दिल और दिमाग़ में विचार, उदगार, भावनाऎं ऊमड़ती रहती हैं। जब यह भावनाऎं ऊमड़ कर फिज़ां मे शब्द बन कर बिखरने लगती हैं, कुछ लोग इन शब्दों को चुन कर पंक्तियों मे पिरो लेते हैं---जिस कारण वो शब्द ऍक कविता या फिर ऍक लेख का सुन्दर रुप ले लेती है। ऎसी एक कोशिश प्रस्तुत है आप के लिए .......................... विनोद कुमार ऐलावादी
रविवार, 16 अक्तूबर 2011
चिंदिया उड़ाने से क्या होगा
ख़तों को अब संभाल कर रखने से क्या होगा
दर्द को यूँ समेट कर रखने से क्या होगा
खुली हवा में ख़तों कों सांस ले लेने दो
यूँ पोटली में समेट कर रखने से क्या होगा
ख़त संजीदा लफ़्ज़ों से लिपट कसमसाते होंगे
यूँ आरजूओं के परिंदे क़ैद करने से क्या होगा
साल-हा-साल गुबार-ए-ज़ख्म थे शुमार ख़तों में
यूँ बरसों कों लम्हे में बदलने से क्या होगा
कहा था ना खतों - किताबत से दूरी रखो
यूँ छत पर अब चिंदिया उड़ाने से क्या होगा
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