
आज फिर ज़हन के
इन बंद दरीचों के तले
दिल में सोये हुऐ
अहसास ने करवट बदली
और चुपके से महक उठा
तेरी याद का फूल
ज़ख्म ने आंख मली
याद ने करवट बदली
गुनगुनाने लगे
मज़रूह तम्मनाऔ के लब
रूह के जिस्म से नग़मात के
धारे फूटे
वक्त की धूल में डूबे हुऐ
यादों के चिराग़
तेरे चेहरे की रौनक को
ज़िला देने लगे
मेरी पलकों से टपकते हुऐ
अश्कों के मोती
मुझे मेरी मोहब्बत का
सिला देने लगे

मुद्दतों बाद...
इक अख़बार के पन्ने पे
मुझे तेरी तसऽवीर नज़र आई
किसी और के साथ
तेरे पहलू में कोई
नौजवां बैठा था
नये तेवर, नये अंदाज़,
नये तौर के साथ
करवटें लेने लगी
दर्द की लहरें दिल में
यादों की राख फिज़ां में
बिखरने सी लगी
ज़हन में गूंज उट्ठी
तेरी खनकती हुई आवाज़
तेरी तहरीर निगाहों में
उभरने सी लगी

तेरी तस्वीर ने यह राज़
मगर फाश किया
कि लोग किस तरह
बदल जाते हैं धीरे धीरे
मोम की तरह बदन
उनका पिघल जाता है
और इक नये सांचे
ढल जाते हैं धीरे धीरे
आज फिर ज़हन के
इन बंद दरीचों के तले
दिल में सोये हुऐ
अहसास ने करवट बदली
और चुपके से महक उठा
तेरी याद का फूल
विनोद………..