यह विजेट अपने ब्लॉग पर लगाएँ

सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

मुद्दत से बैठा हूँ…….!!


गोते लगाता रहा
लफ़्ज़ों के समुन्दर में
मिला ना कोई लफ्ज़ जो तेरे दिल के ज़रा करीब हो

पलटता रहा
पुराने खतों के ढेर कों
मिला ना कोई लफ्ज़ जिस में छिपा मेरा नसीब हो

गुदगुदाता रहा
उँगलियों से वीणा के हर तार कों
मिला ना कोई सुर जिस में तेरी खनकती हँसी शरीक हो

बही खातों के
सारे पन्ने छान लिए
मिला ना कोई खाता जिसमे उधार तेरी प्रीत हो

झाँक लिए
सारे झरोके तेरी यादों के
मिला ना कोई भीगा लम्हा बंद साँसों में हिचकियों का यकीन हो

मुद्दत से बैठा हूँ
मयखाने में जाम लिए
ज़ब्त करता रहा अश्कों कों छलकने से कहीं शराब की तोहीन हो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें