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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

 कशमकश”…………




आसमाँ पाने की ज़िद मुख़्तसर  हुई ज़ॅमी

हसरतों को अभी और इम्तिहाँ का यकीं



खंजर का हुनर सीने के पार जाना

सलतनत--जुनून का यूँ क़तल होता नही



शीशे की नफ़ासत गिर के चटकना

हौसला अपना, कोई मील का पत्थर नही



तूफां का गरूर ज़मींदोष हो आशियाना

बुनियाद मेरे मकान की इतनी कमज़ोर भी नही



ख्वाबों की हद्द, बंदिशो की मंज़र-कशी

नींद अपनी भी हुज़ूर इतनी कच्ची नही

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