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सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

इबादत सी है” 


शायरी एक शरारत सी है
इब्तेदाइश्क़ की इनायत सी है     


लबों पर बुदबुदाती बंदिश
किसी सब्र से गुफ्तगू की इबारत सी है


हाथ से फिसलती रेत और ज़ुबान पत्थर
किसी ख्वाब की ताबीर से बग़ावत सी है


सर्द हवाओं मे गेसुओं की आवारगी
किसी रहगुज़ार के रुख्स्त सी है


चिराग़ की रोशनी मे दमकते रुखसार
किसी तलबगार की इबादत सी है


खामोश  गुम नज़रे
किसी ज़लज़ले की आहट सी है


शायरी एक शरारत सी है
दास्तान--मुहब्बत की लिखावट सी है


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