
कागज़ पर रेंगती कलम
रौंदती चली गयी
हर लफ्ज़ कों
तलाश थी ...!!
उस लफ्ज़ की
बन जाए इन्द्रधनुष
छलक कर सारी स्याही
तलाश थी ...!!
उस लफ्ज़ की
बन जाए अंगार
तड़प कर सारी स्याही
तलाश थी बस ...!!
उस लफ्ज़ की
छूते ही बन जाए तेरी कविता
पिघल कर सारी स्याही
मेरा मानना है कि इंसान के अन्दर ऍक कवि या लेखक छुपा होता है।हर इंसान के दिल और दिमाग़ में विचार, उदगार, भावनाऎं ऊमड़ती रहती हैं। जब यह भावनाऎं ऊमड़ कर फिज़ां मे शब्द बन कर बिखरने लगती हैं, कुछ लोग इन शब्दों को चुन कर पंक्तियों मे पिरो लेते हैं---जिस कारण वो शब्द ऍक कविता या फिर ऍक लेख का सुन्दर रुप ले लेती है। ऎसी एक कोशिश प्रस्तुत है आप के लिए .......................... विनोद कुमार ऐलावादी
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