जैसे अंतर से उठती
बेशुमार कणों
की मौन सिसकी
उष्मा ..!!
जैसे अंतर से उठती
सुलगते सपनो
की ज्वाला भभकी

तृष्णा ..!!
जैसे अंतर से रिसती
द्रवित मन
की मदिरा छलकी
खुश्बू ..!!
जैसे अंतर से महकी
तन की
इक इक नस चटकी
वेदना ..!!
जैसे अंतर से लिपटी
आँखों के पोखर
में काई सी जमी विरक्ति
क्षुधा ..!!
जैसे अंतर से बहती
शुष्क होंठों पर
प्रियतम के प्रेम की थपकी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें