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रविवार, 20 मार्च 2016

दफ़न किए जाते हो





कभी बारिश कभी सूखा कभी बवंडर बना कर

बरसते हैं ख्याल भी खुदाई मौसम बना कर




काश्तकार हूँ तलाशता हूँ अहसास की नरम मिट्टी

ख्याल बहा देते हो आँखो के दरिया बना कर




बोता हूँ लफ़्ज़ों के तराने उम्मीदों की ज़ॅमी पर

हसरते दफ़न किए जाते हो होंठो मे दबा कर




खरीददार नही मिलता भीगी हुई नज़मों का कहीं

रखते हो ज़हन मे सब्ज़ आरज़ुओं का  ज़ख़ीरा बना कर

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