
ख़तों को अब संभाल कर रखने से क्या होगा
दर्द को यूँ समेट कर रखने से क्या होगा
खुली हवा में ख़तों कों सांस ले लेने दो
यूँ पोटली में समेट कर रखने से क्या होगा
ख़त संजीदा लफ़्ज़ों से लिपट कसमसाते होंगे
यूँ आरजूओं के परिंदे क़ैद करने से क्या होगा
साल-हा-साल गुबार-ए-ज़ख्म थे शुमार ख़तों में
यूँ बरसों कों लम्हे में बदलने से क्या होगा
कहा था ना खतों - किताबत से दूरी रखो
यूँ छत पर अब चिंदिया उड़ाने से क्या होगा