दफ़न किए जाते हो
कभी बारिश कभी सूखा कभी बवंडर बना कर
बरसते हैं ख्याल भी खुदाई मौसम बना कर
काश्तकार हूँ तलाशता हूँ अहसास की नरम मिट्टी
ख्याल बहा देते हो आँखो के दरिया बना कर
बोता हूँ लफ़्ज़ों के तराने उम्मीदों की ज़ॅमी पर
हसरते दफ़न किए जाते हो होंठो मे दबा कर
खरीददार नही मिलता भीगी हुई नज़मों का कहीं
रखते हो ज़हन मे सब्ज़ आरज़ुओं का ज़ख़ीरा बना कर